रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पूरी सरयू के तट पर बसा नगरी (लगभग २४५ किलोमी॰) लम्बाई और तीन योजन (लगभग ३६ कि॰मी॰) चौड़ाई में बसी थी। कहा जाता है कि यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। कथाओं के अनुसार सरयू के तट पर स्थित अयोध्या में कुछ ऐसी अमरबेल के समान अमरवृक्ष भी है। अयोध्या नगर में विष्णु ने मनु के वंश में श्री राम के रूप में हिंदू धर्म के अवतार को जन्म दिया है। अयोध्या सप्तपुरियों में से एक है।
वेध में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, "अयोध्याया नवब्रह्म देवानाम् एष्योस्तथ्यम्" इसकी महिमा को बखान किया गया है। अर्विवेद में चौमिक प्रतिक के रूप में अयोध्या का जिक्र है।
अर्थात् अब चक्र और नौ घेरों वाली अयोध्या देवों की पुरी है, (तस्य हिरण्यकः कोशः) उसमें प्रकाश वाला कोश है, (स्वर्णः ज्योतीष अयोध्या की) आनंद और प्रकाश से युक्त है।
जैन मत के अनुसार चार चौथी तैलिकों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। इनमें से पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ जी, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी, छोटे तीर्थंकर अभिनंदनाथ जी, पाचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौथे तीर्थंकर अनंतनाथ जी का जन्म हुआ था। जैन तैलिक अनुज के अनुसार भगवान रामचंद्र का जन्म भी इसी तैलिक में हुआ था। इस तैलिक के भगवान रामचंद्र जी द्वारा उस समय महल में किए गए निर्माण इतिहास में दर्ज है। यह महल और निर्माण भगवान रामचंद्र जी के परंपरागत निर्माण के अनुसार था।
अयोध्या में धार्मिक इतिहास का गहरा संबंध है। अयोध्या में आने वाले पर्यटकों को अयोध्या के धार्मिक स्थल देखना चाहिए। यहां पर्यटकों के लिए पर्यटन केंद्रों में रामकथा संग्रहालय, भगवान राम की धार्मिक यात्रा से जुड़े स्थल और अन्य धार्मिक संग्रहालय हैं। यहां भगवान राम के जन्म और संबंधित धर्म ग्रंथों की विस्तार में व्याख्या की जाती है।
अयोध्या सांस्कृतिक दृष्टि से भी प्रमुख स्थल है। अयोध्या प्रभु श्री राम के जन्मस्थली होने के साथ ही "रिलिजियन के दृष्टिकोण" विभिन्न धर्मों के इतिहासिक महत्व को भी दर्शाता है।